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Thought

04 Jul, 2024
निवेदन है की दो मिनट का टाइम निकाल कर जरूर पढ़े ये बकवास नहीं है सच्चाई है समाज की एक कटु सत्य..!! रिश्ते तो पहले होते थे। अब रिश्ते नही सौदे होते हैं। बस यहीं से सब कुछ गड़बड़ हो रहा है। अभी 90% किसी भी माँ बाप मे अब इतनी हिम्मत शेष नही बची कि बच्चों का रिश्ता अपनी मर्जी से कर सकें। पहले खानदान देखते थे। सामाजिक पकड़ और सँस्कार देखते थे और अब .... मन की नही तन की सुन्दरता , नोकरी , दौलत , कार , बँगला। साइकिल , स्कूटर वाला राजकुमार किसी को नही चाहिये । सब की पसंद कारवाला ही है। भले ही इनकी संख्या 10% ही हो । ल वालो को लड़की बड़े घर की चाहिए ताकि भरपूर दहेज मिल सके और लड़की वालोँ को पैसे वाला लड़का ताकि बेटी को काम करना न पङे। नोकर चाकर हो। परिवार छोटा ही हो ताकि काम न करना पङे और इस छोटे के चक्कर मे परिवार कुछ ज्यादा ही छोटा हो गया है। पहले रिश्तो मे लोग कहते थे कि मेरी बेटी घर के सारे काम जानती है और अब.... हमने बेटी से कभी घर का काम नही कराया यह कहने में शान समझते हैं। इन्हें रिश्ता नही बेहतर की तलाश है। रिश्तों का बाजार सजा है गाङियों की तरह। शायद और कोई नयी गाङी लांच हो जाये। इसी चक्कर मे उम्र बढ रही है। अंत मे सौ कोङे और सौ प्याज खाने जैसा है अजीब सा तमाशा हो रहा है। अच्छे की तलाश मे सब अधेड़ हो रहे हैं। अब इनको कौन समझाये कि एक उम्र मे जो चेहरे मे चमक होती है वो अधेङ होने पर कायम नही रहती , भले ही लाख रंगरोगन करवा लो ब्युटिपार्लर मे जाकर। एक चीज और संक्रमण की तरह फैल रही है। नोकरी वाले लङके को नोकरी वाली ही लङकी चाहिये। अब जब वो खुद ही कमायेगी तो क्यों आपके या आपके माँ बाप की इज्जत करेगी.? खाना होटल से मँगाओ या खुद बनाओ बस यही सब कारण है आजकल अधिकाँश तनाव के एक दूसरे पर अधिकार तो बिल्कुल ही नही रहा। उपर से सहनशीलता तो बिल्कुल भी नहीं। इसका अंत आत्महत्या और तलाक घर परिवार झुकने से चलता है , अकड़ने से नहीं.। जीवन मे जीने के लिये दो रोटी और छोटे से घर की जरूरत है बस और सबसे जरुरी आपसी तालमेल और प्रेम प्यार की लेकिन..... आजकल बङा घर व बड़ी गाड़ी ही चाहिए चाहे मालकिन की जगह दासी बनकर ही रहे। आजकल हर घरों मे सारी सुविधाएं मौजूद हैं.... कपङा धोने की वाशिँग मशीन मसाला पीसने की मिक्सी पानी भरने के लिए मोटर मनोरंजन के लिये टीवी बात करने मोबाइल फिर भी असँतुष्ट... पहले ये सब कोई सुविधा नहीं थी। पूरा मनोरंजन का साधन परिवार और घर का काम था , इसलिए फालतू की बातें दिमाग मे नहीं आती थी। न तलाक न फाँसी आजकल दिन मे तीन बार आधा आधा घँटे मोबाइल मे बात करके , घँटो सीरियल देखकर , ब्युटिपार्लर मे समय बिताकर। मैं जब ये जुमला सुनती हुँ कि घर के काम से फुर्सत नही मिलती तो हंसी आती है। बहनो के लिये केवल इतना ही कहूँगी की पहली बार ससुराल हो या कालेज लगभग बराबर होता है। थोङी बहुत अगर रैगिँग भी होती है तो सहन कर लो। कालेज मे आज जूनियर हो तो कल सीनियर बनोगे। ससुराल मे आज बहू हो तो कल सास बनोगी। समय से शादी करो। स्वभाव मे सहनशीलता लाओ। परिवार में सभी छोटे बडों का सम्मान करो। ब्याज सहित वापिस मिलेगा। आत्मघाती मत बनो। जीवन मे उतार चढाव आता है। सोचो समझो फिर फैसला लो। बङो से बराबर राय लो। उनके उपर और ऊपर वाले पर विश्वास रखो विचार करे की हम कहा से कहा आ गये...!!

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